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Kavita Kosh से
<poem>
बड़े दिनों बाद मुलाकात हुई रुमा नाम की उस लड़की से
महरून रंग की साड़ी, गाढ़े नीले रंग का कार्डिगन, रक्तिम स्लीपर
ढलती शाम की धूप में अनार के फूल की तरह
लग रहा था वह मुखड़ा | ।
उसके उड़ते बालों की झील में खेल रही थी
विदा लेते दिन की लालिमा लालिमा।
आदि दिगन्त जैसी भौहों की सन्धि पर यह मोहक बिन्दी
कितने दिनों के बाद छू लेने की इच्छा हुई हुई।
जबकि सैकड़ों आलोकित वर्ष कट जाने के बाद
आख़िर ख़त्म हुआ
अन्ध पर्यटन
फिर भी अंजलि भर उठा ही ली शिल्प-कलाकला।
ख़ुद को भिखारी-सा महसूस किया