भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
1. संपा 
सूरज की दस्तक से बेखबर
तीन चौथाई शहर जब सोया रहता है
जो चाय भी पीने को मिलती है, वो कप उनका बिसैना हो जायेगा
वे सब इकट्ठी निकल पड़ती है, अपने काम की तरफ
ii-2. शिल्पी 
अलसुबह संपा, शिल्पी के घर का कॉलबेल बजाती है
शिल्पी दरवाज़े पर संपा को देखकर
पढाई की डीग्रीयां केवल शादी तय करने के लिए जरुरी थे?
ये कैसा मकड़जाल है जिसमे...
वो निकलने की कोशिश में और फंसती फँसती जाती है
सोचते हुए तमाम सवालों का गाव तकिया लगाकर सो जाती है
iii-3. सूज़ी 
सूरज सर चढ़ने पर, संपा पहुच जाती है
सूज़ी मैडम की कोठी पर
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,148
edits