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कली चम्पा की / कविता भट्ट
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03:42, 14 फ़रवरी 2018
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<poem>
कली चम्पा की
'''
ओ चम्पा की कली!
'''
सच को झूठ के आवरण में लपेटकर
संसारी छलते रहे तेरा मन अपनत्व समेटकर
लघु तेरा जीवन
अचिर होकर भी तेरा चिर यौवन
स्वार्थी मानव ने नोंच डाला उसे
भी
भी।
</poem>
वीरबाला
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