चेखोव का बिम्ब{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार मुकुल|संग्रह=ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / कुमार मुकुल}} ऊँचे कद-काठी की लकदक देह पर झूलते ढीले सफ़ेद कुरते में दोलती
ऊंचे कद-काठी की लकदक देह पर झूलते
ढीले सफेद कुरते में दोलती
कोई न्यूकमर प्रशासिका थी वह
अपने गदराए काले बुलडाग से उसके लाड़ को देख
यह साफ़ था कि वह ... या ... है
कुत्ते के गले में कोई शिक्कड़ नहीं था बस बेल्ट थी
पर युवती की निगाहों और इशारों के बंधन को
वह बखूबी समझ रहा था
उसकी चील सी काउंस आंखों में
लाड़ में लोटते हुए भी
एक तीखी शिकारी चमक थी
सर्किट हाउस के फर्श पर पंजों के बल दोलती
युवती के डोलते वक्ष
दो अन्य झबरों से लग रहे थे
जिन्हें अपने झबरेपन से अंधी होती आंखों
और सिर पर किसी स्पर्श की प्रतीक्षा थी
उनकी कुकुआहट साफ़ सुनी जा सकती थी
युवती की आंखों पर हल्का काजल था
या आंखें ही सुरमयी थीं पता नहीं
जो कुत्ते पर केंद्रित थीं
अब कुत्ते को बाहर छोड़ युवती ने किवाड़ भिड़का लीघूम-घाम कर कुत्ते ने हल्की दस्तक दी औरअंदर हो गयाऔर चेखोव कीसफेद कुत्तों वाली महिला का बिम्ब बाधित हुआजिसे पड़ोस की बालाएं जीवित करती रहती थींऔर - जीवन को बच्चों की बाधाओं सेमुक्त रखने के आकांक्षी पत्रकार एसपीसिंह कादुख याद आयाजो उनके मृत कुत्ते के प्रति प्रतिबद्ध था।वह बख़ूबी समझ रहा था
आसमानों कोउसकी चील सी काउंस आँखों में
आसमानों कोफुनगियों पर उठाएकैसे उन्मुक्त हो रहे है वृक्षआएंबटाएं इनका भारऔर मुक्त होकर हंसेंहंसेंठहाके लगाएंहंसेंकि आसमानकुछ और ऊपर उठ जाए।लाड़ में लोटते हुए भी
बारिशएक तीखी शिकारी चमक थी
भादो की ढलती इस सांझलगातार हो रही है बारिशसर्किट हाउस के फ़र्श पर पंजों के बल दोलती
हल्कीदीखती बमुश्किलयुवती के डोलते वक्ष
उसकी आवाज सुनने कोधीमा करता हूं पंखापत्तों दो अन्य झबरों से, छतों से आ रही हैंटपकती बड़ी बूंदों कीटप-चट-चुट की आवाज़ेंछुपे पक्षी निकल लग रहे हैंअपने भारी-भीगते पंखों से कौए भरते हांफती उड़ानउधर लौट रहा मैनाओं का झुंडअपेक्षाकृत तेजी सेपंखों पर जम आती बूदों कोझटकारता।थे
पहाड़जिन्हें अपने झबरेपन से अंधी होती आँखों
कैसा वलंद है पहाड़एक चट्टानजैसे खड़ी होती है आदमी के सामनेउसका रुख मोड़ती हुईखड़ा है यह हवाओं के सामनेऔर सिर पर किसी स्पर्श की प्रतीक्षा थी
चोटी से देखता हूंचींटियों से रेंग रहे हैं ट्रकइसकी छाती परजो धीरे-धीरे शहरों कोढो ले जाएंगे पहाड़जहां वे सड़कों, रेल लाइनों पर बिछ जाएंगेबदल जाएंगे छतों मेंउनकी कुकुआहट साफ़ सुनी जा सकती थी
धीरे-धीरे मिट जाएंगे पहाड़तब शायद मंगल से लाएंगे हम उनकी तस्वीरेंया बृहस्पति, सूर्य सेबाघ-चीते थेतो रक्षा करते थे पहाड़ों युवती की, जंगलों कीआदमी ने उन्हें अभयारण्यों में डाल रखा हैअब पहाड़ों को तो चििड़याखानों मेंरखा नहीं जा सकताप्रजनन कराकर बढ़ाई नहीं जा सकतीइनकी तादादआँखों पर हल्का काजल था
जब नहीं होंगे सच मेंतो स्मृतियों में रहेंगे पहाड़और भी खूबूसरत होते बादलों को छूते सेहो सकता हैवे काले सेनीले, सफ़ेद या सुनहले हो जाएंद्रविड़ से आर्य हुए देवताओं की तरहऔर उनकी कठोरता तथाकथित हो जाएवे हो जाएं लुभावनेकेदारनाथ सिंह के बाघ की तरह।आँखें ही सुरमई थीं पता नहीं
एक जो कुत्ते की तरह चांदपर केंद्रित थीं
इस बखत ठंड भयानक है
और ठिठुरता हुआ मैं
बैठा हूं कमरे में
बाहर चांद एक कुत्ते की तरह
मेरा इंतज़ार कर रहा होगा
अभी मैं निकलूंगा
और पीछे हो लेगा वह
कभी भागेगा
आगे-आगे बादलों में
कभी अचानक किसी मोड़ पर रुककर
लगेगा मूतने
और फिर
भागता चला जाएगा आगे।
चेहराअब कुत्ते को बाहर छोड़ युवती ने किवाड़ भिड़का ली
सूरज सिर पर होतो मैं नहीं समझताकि आदमी का चेहरा साफ दिखता हैआंखें चौंधियाती सी हैंघूम-घाम कर कुत्ते ने हल्की दस्तक दी और
चांदनी में चेहरा दिखता तो हैपर पढ़ा नहीं जाताअंदर हो गया
गोधूलि और प्रात अच्छे हैंजब चेहरे खिलते और बोलते हैंचेख़व की
पर तारों की रोशनी मेंतो रह ही नहीं जाता चेहरापूरी देह होती है चुप्पी में डोलतीअन्धे शायद सही समझते होंतारों भरी रात की भाषाजिसे वे बजाते हैं अक्सरऔर प्रेमी भीजो बचना चाहते हैं तेज रौशनी सेजिनके लिए आंख की चमक भर रौशनी हीकाफी होती है।सफ़ेद कुत्तों वाली महिला का बिम्ब बाधित हुआ
चांद-तारेजिसे पड़ोस की बालाएँ जीवित करती रहती थीं
कांसे के हसिए सा पहली का चांद जबपश्चिमी फलक पर भागता दिखता हैतब आकाश का जलता तारा चलता है राह दिखलातादूज को दोनों में पटती है और भीभाई-बहन से वे साथ चहकते हैंपर तीज-चौठ जीवन को बढ़ती जाती हैचांद बच्चों की उधार की रौशनी और तारातेजी बाधाओं से दूर भागता सिमटता जाता है खुद मेंआकाश में और भी तारे हैंजो जलते नहीं टिमटिमाते हैंपर वे चांद को जरा नहीं लगाते हैंनिर्लज्ज चांदजब दिन मेंसूरज को दिया दिखलाता हैतारों को यह सब जरा नहीं भाता है।
महानगरमुक्त रखने के आकांक्षी पत्रकार एस.पी.सिंह का
सुबहें तो तुम्हारी भीवैसी ही गुंजान हैंचििड़यों से-कि किरणों सेव भीगी खुशबू सेदुख याद आया
बस तुम ही हो इससे बेजारजो उनके मृत कुत्ते की मानिन्द सोते रहते हो तुम्हारे नाले विराट हैं कितने बलखाती विविधताओं से पछाड़ खातेऔर नदियों कोबना डाला है तुमनेतन्वंगीऔर तुम्हारी स्त्रियांकैसी रंगीन राख पोतेभस्म नजरों से देखतीगुजरती जाती हैं।के प्रति प्रतिबद्ध था।