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06:09, 6 मार्च 2018
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दो चुटिया बाँधे साधने की कला–कौशल हैउस अल्हड़ लड़की ने अभी-अभी तो जमीं पर पाँव रखा ही था दुनिया अभी गोल होने ज़िन्दगी की प्रक्रिया वृताकार वाले में थी ! और / पृथ्वी चपटी होती जा रही थी...उसकी नजरें अभी पृथ्वी के उन अवांछित फलों यह तनी हुई रस्सी पर, ठीक से टिकी भी नहीं थी जिसे चख लेने पर भंग हो जाती संतुलन बखूबी जानती है सारी नैतिकताएँ! ठीक उसी वक़्त उसकी नज़रें तीर से भी आक्रामक उस क्रांतिकारी नज़र से ऐसे विंध गयी की उसे वह फल खाना लड़की! याद ही न रहा जिसे खाने के लिए जब वह उतरी थी ज़मीं पर...भगत सिंह तो उसी दिन शहीद हो गए थे जिस दिन उनकी नजरें इस माशूका नपे तुले क़दमों से मिली थी! प्रेम की कोंपलें फूटने से पहले ही डगमगाती है उन्हें दफना देना उस राह परहमारे देश की प्रथा रही जो टिकी होती है उन दोनों को भी यह रस्म अदायगी करनी पड़ीदो बांस के सहारे...भगत सिंह जेल के सीखचों से करतब दिखती वह लड़की निहारते रहे अपनी माशूका बाज़ार का चेहरा और वह अल्हड़ लडकी हिस्सा पथ्थरों को फेंक–फेंक बन कर रह जाती है गिनती रही उन बेहिस वक़्त की रवायतों को...जहाँ सपने खरीदे और बेचे जाते हैं वह आजीवन कुंवारी मासूमा चंद सिक्कों में ही जिसका कौमार्य कभी भंग नहीं हुआ आज भी कूकती समेट लेती है अमिया के बागों में और / भगत सिंह वहीँ उसकी डालों पर झूल रहे हैं फांसी अपने हिस्से का फंदा बनाकरबाज़ार...कुछ कहानियाँ कभी ख़तम नहीं होती और / कुछ प्रेम कवितायें लिखी नहीं दुहराई जाती हैं...</poem>