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Kavita Kosh से
वैसी ही गुंजान हैं
व भीगी खुशबू से
तन्वंगी
और तुम्हारी स्त्रियांस्त्रियाँ
कैसी रंगीन राख पोते
भस्म नजरों नज़रों से देखती