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मांझल रात / करणीदान बारहठ

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|संग्रह=झर-झर कंथा / करणीदान बारहठ
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<poem>
मांझल रात
सपनां में मिलग्यो
म्हारो परणीज्योड़ो
जी उचट्यो
आंख्यां में झलक्या आंसूड़ा
ओल्यूं आई
हिवड़ो लाग्यो ओलण नै
कांईं करूं
कठै जाऊं
कद पाऊं मिलण नै
पसवाड़ो फोर्यो
नानड़यो लाग्यो चूंगण नै
टप टप पड़ग्या
आंसूड़ा,
चूम लिया गीगलै रा गाल
कालजै लागयो
चिमटायो
पुचकार्यो
हिवड़ो होग्यो हिमजल सो
कुण जाणै क्यूं ?
</poem>
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