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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अनीता वर्मा}}भेद मैं तुम्हारे भीतर जाना चाहती हूं<br>रहस्य घुंघराले केश हटा कर <br>मैं तुम्हारा मुंह देखना चाहती हूं<br>ज्ञान मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूं<br>निर्बोध निस्पंदता तक<br>अनुभूति मुझे मुक्त करो<br>आकर्षण मैं तुम्हारा विरोध करती हूं<br>
जीवन मैं तुम्हारे भीतर से चलकर आती हूं।