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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
परभातै अर सिंझ्या
थारी सेवा करां
थनै मनावण
झालर-नगाड़ा बजाय
संख पूरां।

थारै न्हावण सारू
दिनूंगै ई
अबोट पांणी री
जळेरी भरां।

धूंपेड़ै धूंपिया धरां
अर
थनै खेवां
गूगळ धूंप
पण
म्हे भूखां मरां!

अे गिगन रा वासी
म्हांरै खातर ई औ
कदै ई कीं बजाव
म्हांनै ई रमाव।
</poem>
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