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घर-अेक / ॠतुप्रिया

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|संग्रह=ठा’ नीं कद हुज्यावै प्रेम / ॠतुप्रिया
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<poem>
आज म्हूं गई
म्हारै पुराणै मुहल्लै में

बठै देख्यौ
म्हारौ छोटो सो घर
जिण रै किवाड़ां लारै
म्हूं लुक ज्यांवती
घणकरी बार

म्हूं देखती रैयी
घर नै भौत देर तांईं

ओळ्यूं रै मिस
केठा किंयां आयग्या आँसू
आँख्यां स्यूं बारै

सोचूं
कै कदी खरीद’र
सूंप स्यूं बापू जी नै
इण घर री चाबी

बापू जी रौ सपनौ हो
औ’ घर
जिको बेच दियौ
स्यात म्हारै सपनां सारू।
</poem>
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