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मदारी / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
मजमै रै करतब में गुम
मदारी री डुगडुगी में
भरमीज्योड़ी भीड़
पीटै ताळी
हरखै
किलोळ करै
पईसा काढै मदारी
जमूरै री जेब सूं
ऊंधै गिलासां हेठै सूं
भीड़ पीटती ताळी
बिसर जावै
खूंजै में पड़ी चिंतावां साथै
टैम री चिल्लर
मदारी काट रैया है जेबां
निकाळ रैया है
चेतना रै खूंजै धर्योड़ी समझ
घाल रैया है
खिणेक री झूठी मुळक
वादां रा नकली नोट
सतरंगी सुपनां री
चिळकणी गिन्नियां
भोडक्यां हालै
अेक लय ताल
जमूरै री ठौड़
आपोआप गळ में
घाल लेवै रस्सी
हरखै मतोमत
खाली खोपडिय़ां
नकल करै
विचारै नहीं
हड़-हड़ हांसै
मदारी...।
</poem>
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