भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़' }} {{KKCatGhazal}} <poem> ज़िन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़िन्दगी की हँसी उड़ाती हुई
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर उठाती हुई
खो गई रेत के समन्दर में
इक नदी रास्ता बनाती हुई
मुझको अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
आ गई ख़ामुशी के नर्ग़े में
ज़िन्दगी मुझको गुनगुनाती हुई
मैं इसे भी उदास कर दूँगा
सुब्ह आई है खिलखिलाती हुई
हर अँधेरा तमाम होता हुआ
जोत में जोत अब समाती हुई
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़िन्दगी की हँसी उड़ाती हुई
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर उठाती हुई
खो गई रेत के समन्दर में
इक नदी रास्ता बनाती हुई
मुझको अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
आ गई ख़ामुशी के नर्ग़े में
ज़िन्दगी मुझको गुनगुनाती हुई
मैं इसे भी उदास कर दूँगा
सुब्ह आई है खिलखिलाती हुई
हर अँधेरा तमाम होता हुआ
जोत में जोत अब समाती हुई
</poem>