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ज़िन्दगी की हँसी उड़ाती हुई / विकास शर्मा 'राज़'
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ज़िन्दगी की हँसी उड़ाती हुई
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर उठाती हुई
खो गई रेत के समन्दर में
इक नदी रास्ता बनाती हुई
मुझको अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
आ गई ख़ामुशी के नर्ग़े में
ज़िन्दगी मुझको गुनगुनाती हुई
मैं इसे भी उदास कर दूँगा
सुब्ह आई है खिलखिलाती हुई
हर अँधेरा तमाम होता हुआ
जोत में जोत अब समाती हुई
</poem>
Shrddha
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