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|रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़'
}}
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<poem>
क़ाफ़िले से अलग चले हम लोग
सुर्ख़ियों में बने रहे हम लोग
देखिये, कब तलक रहेंगे साथ
एक-से हैं मिज़ाज के हम लोग
सुब्ह ! क़ुर्बान तेरे चेहरे पर
रात कितने उदास थे हम लोग
जिनका सूझा न कुछ जवाब हमें
उन सवालों पे हँस दिए हम लोग
अब भी प्यारी हैं बेड़ियां हमको
हैं न जाहिल पढ़े-लिखे हम लोग
अब के हारे तो टूट जाएँगे
जीत जाएँ ख़ुदा करे हम लोग
</poem>
|रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़'
}}
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क़ाफ़िले से अलग चले हम लोग
सुर्ख़ियों में बने रहे हम लोग
देखिये, कब तलक रहेंगे साथ
एक-से हैं मिज़ाज के हम लोग
सुब्ह ! क़ुर्बान तेरे चेहरे पर
रात कितने उदास थे हम लोग
जिनका सूझा न कुछ जवाब हमें
उन सवालों पे हँस दिए हम लोग
अब भी प्यारी हैं बेड़ियां हमको
हैं न जाहिल पढ़े-लिखे हम लोग
अब के हारे तो टूट जाएँगे
जीत जाएँ ख़ुदा करे हम लोग
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