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|रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस
|अनुवादक=
|संग्रह=चाँद का पैवन्द / कल्पना सिंह-चिटनिस
}}
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<poem>
कल्पना,
सागर किनारे
रेत के घरौंदे की तरह
लहरों के ठोकर खाती है
और बिखर जाती है,
और मैं -
एक जिद्दी बच्चे की तरह।
</poem>
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कल्पना,
सागर किनारे
रेत के घरौंदे की तरह
लहरों के ठोकर खाती है
और बिखर जाती है,
और मैं -
एक जिद्दी बच्चे की तरह।
</poem>