लुटाते जो कुंकुम मकरन्द,
भुवन में सुधामयी मुसकान।
सजनि, ऋतु मादिनी
वागीश्वरी: झपताल
सजनि, ऋतु मादिनी;
मन्धमधुदानिनी मधुरपिकानादिनी।
मलय-चदन-सुरभि-स्नात दक्षिण पवन,
कंुज-कानन मगन, नाद-नन्दित गगन,
सांगरागा धरा नयन अभिरामिनी।
लुब्ध मधु-मकरन्द मुखर मधुकर-निकर,
राग-स्वर-शर-विद्ध-निमिष-लव-पल-पहर,
फुल्लमुकुलित लता कनकवर्णांगिनी।
अरुण म´््िजष्ठ द्रुम-शिखर किसलय-ज्वलित,
शोकदीपन विरह-विषम-ज्वरतप्तकृत,
कुसुमज्वालाशिखा दुसहदुखदायिनी।
(15 मार्च, 1974)
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