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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>
कर चुके हम फ़ैसला अब कुछ भी हो
इश्क़ में इस दिल का यारब कुछ भी हो
चारा साज़ों को नहीं कोई ग़रज़
दर्द बीमारों को मतलब कुछ भी हो
हारने का ख़ौफ़ दिल में किस लिए
आ गये मैदान में अब कुछ भी हो
बोल मत कुछ भी समन्दर के ख़िलाफ़
देख कर सूखे हूए लब कुछ भी हो
कब तलक ओढ़े रहेंगे बे हिसी
चुप रहेंगे कब तलक सब कुछ भी हो
</poem>
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कर चुके हम फ़ैसला अब कुछ भी हो
इश्क़ में इस दिल का यारब कुछ भी हो
चारा साज़ों को नहीं कोई ग़रज़
दर्द बीमारों को मतलब कुछ भी हो
हारने का ख़ौफ़ दिल में किस लिए
आ गये मैदान में अब कुछ भी हो
बोल मत कुछ भी समन्दर के ख़िलाफ़
देख कर सूखे हूए लब कुछ भी हो
कब तलक ओढ़े रहेंगे बे हिसी
चुप रहेंगे कब तलक सब कुछ भी हो
</poem>