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|रचनाकार=पंकज चौधरी
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ब्राह्मण ब्राह्मण का कुरिया रहा है
तो भूमिहार भूमिहार का
राजपूत राजपूत का कुरिया रहा है
तो कायस्थ कायस्थ का
चमार चमार का कुरिया रहा है
तो वाल्मीकि वाल्मीकि का
खटिक खटिक का कुरिया रहा है
तो मीणा मीणा का
लेकिन शेष जातियां
अपनी-अपनी कुरियाने में उरिया रही हैं!
</poem>
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ब्राह्मण ब्राह्मण का कुरिया रहा है
तो भूमिहार भूमिहार का
राजपूत राजपूत का कुरिया रहा है
तो कायस्थ कायस्थ का
चमार चमार का कुरिया रहा है
तो वाल्मीकि वाल्मीकि का
खटिक खटिक का कुरिया रहा है
तो मीणा मीणा का
लेकिन शेष जातियां
अपनी-अपनी कुरियाने में उरिया रही हैं!
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