भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
गहन दुःखन देख सका मेरातो फूट पड़ासाथी नीला आसमाँदेने आ गएसब मेरा ही साथचाहे प्रभातखेत औ खलिहानहों नन्हे पौधेया फूलों की कतार।भर ही गयाआँसू से लबालबपूरा जहान।धुँधला दिखे अबसब कुछ ही।आँसुओं भरी आँखेंरूँधा- सा गलाभारी हुआ था मन।तभी आ गईनन्हीं धूप किरण।खुला आसमाँखिल गया मेरा भीमुरझाया वो मन।
</poem>