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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
भायली बादळी नै
कळपती रोंवती
देख‘र
बिरछ री पत्त्यां भी
रोवण लागगी,

बादळी तो
थक‘र थमगी
पण पत्त्यां
आंसूंड़ा
ढळकांवती रैई
घणीं ताळ तांई
</poem>
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