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Kavita Kosh से
26
पाषाण थे वे
टूटे न छूटे ।
27
अश्रु ने कही
सिर्फ तुमने बाँची
व्यथा की कथा।
28
घने अँधेरे
प्रकम्पित लौ तुम
किए उजेरे।
29
निराश मन
चूम तेरे अधर
पाता जीवन
30
नेह का नीर
हर लेना प्रिय की
तू सारी पीर।
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