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|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
}}
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तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क-अफ़्शाँ हाय हाय
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामा हाय हाय
याँ कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू
वाँ बगलगीरी का शर्माया सा अरमाँ हाय हाय
वो मेरे होंटों पे कुछ कहने की हसरत वाए शौक़
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमाँ हाय हाय
</poem>
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|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
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तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क-अफ़्शाँ हाय हाय
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामा हाय हाय
याँ कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू
वाँ बगलगीरी का शर्माया सा अरमाँ हाय हाय
वो मेरे होंटों पे कुछ कहने की हसरत वाए शौक़
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमाँ हाय हाय
</poem>