<poem>
भजार
अहाँ चलि गेलौं
कतऽ चलि गेलौं
कोन गली-कुच्चीमे नुका गेलौं
अखने तँ खगता रहै अहाँक।
हमराएकटा घर अछिजाहिमेबाबा-बाबीबाबू-मायभाय-बहिनबेटा-बेटीसभ केओ अछिमुदा,घरनीक अहाँक मोनक आगि मिझायत नहि रहनेहमर मोनक बस्तीमे पसरल अछिकहियोचुप्पीमौसम कोने होअयउदासीअहाँ धाराक विपरीतआ मसानक साम्राज्य।सीना तानि कऽ चललहुँ।
नहि जानि कहिया धरिहमहूँ धाराक विपरीतपसरल रहत ईतानबै सीनामरघट जकाँ।तकरे ना मित्रता कहतै लोक।
</poem>