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|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
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<poem>
मैं जिसे चाहूँ जिऊँ मेरी ज़िन्दगी है मियां
तुम्हें सलीक़ा सिखाने की क्या पड़ी है मियां

किसी से बिछडो, तो ये सोचकर बिछड़ जाना
ताल्लुक़ात से यह ज़िन्दगी बड़ी है मियां

तुम्हारी सोचों के अक्सर खिलाफ होता है
तुम्हारे बारे में दुनिए जो सोचती है मियां

इस इंतिज़ार में क्यों हो, वो लौट आयेगा
तुम्हारे प्यार में शायद कोई कमी है मियां

बिछड़ गये तो किसी रोज़ मिल भी जाओगे
यह दुनिया ऐसी कहां की बहुत बड़ी है मियां।
</poem>
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