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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हो इनायत दर्दो-ग़म रंजो-अलम
मांगते हैं तुमसे हम रंजो-अलम
जो भी चाहो इश्क़ में हासिल करो
दर्दे-दिल, आहो-फुगां रंजो-अलम
इंतिहाए-इश्क़ में देखें कि अब
तोड़ते हैं मेरा दम रंजो-अलम
पूछते हैं वो हमारा हाले-दिल
जिनका हम पर है करम रंजो अलम
कम से कम उनको तो ये मालूम है
सह रहे हैं कब से हम रंजो-अलम
ऐ सितमगर तू बता तेरे सिवा
और किसका है करम रंजो-अलम
हम मुक़द्दर के धनी हैं दोस्तो
मिल रहे हैं हर क़दम रंजो-अलम
दीदनी है मेरे घर का ये समां
मिल रहे हैं यां बहम रंजो-अलम।
</poem>
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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
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<poem>
हो इनायत दर्दो-ग़म रंजो-अलम
मांगते हैं तुमसे हम रंजो-अलम
जो भी चाहो इश्क़ में हासिल करो
दर्दे-दिल, आहो-फुगां रंजो-अलम
इंतिहाए-इश्क़ में देखें कि अब
तोड़ते हैं मेरा दम रंजो-अलम
पूछते हैं वो हमारा हाले-दिल
जिनका हम पर है करम रंजो अलम
कम से कम उनको तो ये मालूम है
सह रहे हैं कब से हम रंजो-अलम
ऐ सितमगर तू बता तेरे सिवा
और किसका है करम रंजो-अलम
हम मुक़द्दर के धनी हैं दोस्तो
मिल रहे हैं हर क़दम रंजो-अलम
दीदनी है मेरे घर का ये समां
मिल रहे हैं यां बहम रंजो-अलम।
</poem>