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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
हो इनायत दर्दो-ग़म रंजो-अलम
मांगते हैं तुमसे हम रंजो-अलम

जो भी चाहो इश्क़ में हासिल करो
दर्दे-दिल, आहो-फुगां रंजो-अलम

इंतिहाए-इश्क़ में देखें कि अब
तोड़ते हैं मेरा दम रंजो-अलम

पूछते हैं वो हमारा हाले-दिल
जिनका हम पर है करम रंजो अलम

कम से कम उनको तो ये मालूम है
सह रहे हैं कब से हम रंजो-अलम

ऐ सितमगर तू बता तेरे सिवा
और किसका है करम रंजो-अलम

हम मुक़द्दर के धनी हैं दोस्तो
मिल रहे हैं हर क़दम रंजो-अलम

दीदनी है मेरे घर का ये समां
मिल रहे हैं यां बहम रंजो-अलम।
</poem>
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