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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
कहने वाले किया नहीं करते
करने वाले कहा नहीं करते

दर्स दिल से जुदा नहीं करते
हम कभी ये ख़ता नहीं करते

इतनी जल्दी खुला नहीं करते
सब से हंस कर मिला नहीं करते

रो रहे हैं हम अपनी किस्मत को
तेरे ग़म का गिला नहीं करते

मय-कशी शैख़ जी भी करते हैं
हां मगर बरमला नहीं करते

ऐ दिलों को उजाड़ने वाले
दिल उजड़ कर बसा नहीं करते।

उठ चुकी है जहां से रस्मे-वफ़ा
हम ही तर्के-वफ़ा नहीं करते

वादा करते हैं तोड़ने के लिए
वो तो वादा वफ़ा नहीं करते

तेरे बन्दे तेरे फ़क़ीर हैं हम
हर जगह हम सदा नहीं करते

भूलकर भी तुम्हारी याद को हम
अपने दिल से जुदा नहीं करते।

</poem>
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