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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुझपे जीना भी आज भारी है
मैंने फ़ुर्कत की शब गुज़ारी है
मिलते रहते है हर क़दम सदमे
मेरी किस्मत में आहो-ज़ारी है
रंजो-ग़म है, अलम है, सदमे हैं
तेरी फ़ुर्कत है आहो-ज़ारी है
तुमसे पाई है इश्क़ में मैंने
दौलते-रंज मुझको प्यारी है
दिल को छेड़ा है याद ने फिर से
फिर मेरे दिल का जख़्म कारी है।
</poem>
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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
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<poem>
मुझपे जीना भी आज भारी है
मैंने फ़ुर्कत की शब गुज़ारी है
मिलते रहते है हर क़दम सदमे
मेरी किस्मत में आहो-ज़ारी है
रंजो-ग़म है, अलम है, सदमे हैं
तेरी फ़ुर्कत है आहो-ज़ारी है
तुमसे पाई है इश्क़ में मैंने
दौलते-रंज मुझको प्यारी है
दिल को छेड़ा है याद ने फिर से
फिर मेरे दिल का जख़्म कारी है।
</poem>