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{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वक़्त की गर्द से, दिल में तेरी यादों के नकूश
अब हैं मुबहम मेरे हाथों की लकीरों की तरह
कोई जंज़ीर बज़ाहिर न ही जिन्दां की फ़सील
फिर भी जीते हैं कई लोग असीरों की तरह
आज वीराने में बैठे हैं तो कल दश्त-नवर्द
हमने इक उम्र गुज़ारी है फ़क़ीरों की तरह।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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वक़्त की गर्द से, दिल में तेरी यादों के नकूश
अब हैं मुबहम मेरे हाथों की लकीरों की तरह
कोई जंज़ीर बज़ाहिर न ही जिन्दां की फ़सील
फिर भी जीते हैं कई लोग असीरों की तरह
आज वीराने में बैठे हैं तो कल दश्त-नवर्द
हमने इक उम्र गुज़ारी है फ़क़ीरों की तरह।
</poem>