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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
दस्तकें देकर बढ़ती है परेशानी हवा
मैं तो दीवाना हूँ मुझसे बढ़ के दीवानी हवा

रास्ते में ये रुके ठहरे नहीं इसका मिज़ाज
बेनियाज़ी से रवां हर पल है सैलानी हवा

अपनी तेज़ी से उड़ाती है कभी मेरा लिबास
पूछती है इस तरह क्या मुझसे बेगानी हवा

आ गई कल रात कमरे में मिरे पिछले पहर
कर गई बैचैन मुझको एक अनजानी हवा

मेहर इसमें इक महक मानूस सी मुझको मिली
जाने किस कूचे से आई जानी पहचानी हवा।

</poem>
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