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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
इज़्ज़त से इसे देखिये, बेटी है किसी की
ये प्यारी सी गुड़िया है, दुलारी है किसी की

नज़रों में हवस भर के, इसे घूरने वालो
इस जिस्म में इक रूह भी, रहती है किसी की

तब्दील वो तो लाश में, हो जाती उसी पल
जब एक भी ऊंगली कोई, उठती है किसी की

इक तीर या खंज़र से भी, होती है ख़तरनाक
इस दिल में कोई बात जो, चुभती है किसी की

आसानी से दिख जाती हैं कमियाँ तो सभी में
आसानी से दिखती नहीं खूबी है किसी की
</poem>
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