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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
मैंने हँसी को चेहरे से जाने नहीं दिया
रुख़ पर उदासी को कभी आने नहीं दिया

वो चाहते थे खेलना दिल से मेरे मगर
मैंने ख़िलौना दिल को बनाने नहीं दिया

मिल जाये जिस से गर्द में इज़्ज़त बुजुर्गों की ़
पलकों को ऐसा ख़्वाब सजाने नहीं दिया

करता रहा मैं कोशिशें दिन रात ही मगर
यादों ने तेरी तुझको भुलाने नहीं दिया

मुझ से मेरे सुकून को जो छीन ले ‘अजय’
उन हसरतों को सर ही उठाने नहीं दिया
</poem>
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