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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
ग़ालिब सा कोई शायरे कामिल न मिलेगा
उन जैसा कोई दह्र में क़ाबिल न मिलेगा

हमदर्द हो जो सबका जो सब के लिए तड़पे
हैवानों की इस बस्ती में वो दिल न मिलेगा

लिखी हो जुदाई जो मुक़़द्दर में अदल से
साहिल से कभी दूसरा साहिल न मिलेगा

हाँ इसकी रविश सब से अलग सब से जुदा है
दिल अपना कभी भीड़ में शामिल न मिलेगा

क्या हँस के कभी बात वो हम से वो न करेंगें
क्या प्यार का हम को कभी हासिल न मिलेगा
</poem>
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