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{{KKRachna
|रचनाकार=एस. मनोज
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जहि धरती पर विद्यापति छथि
चंदा झा सन छथि विद्वान
ओहि धरती पर चलू देखाबी
काला आखर महिस समान
चलू मेटाबी अहि कलंककें
जे धरती अछि सोना उगलैत
पोखरि पोखरि माँछ मखान
ओहि धरती पर चलू देखाबी
भुक्खल अछि मजदूर किसान
चलू मेटाबी अहि पीड़ाकें
जहि भाषामे हरिमोहन छथि
यात्री जी सन गुण केर खान
ओ भाषा आय सिकुड़ि रहल अछि
सिमटि रहल मैथिल केर मान
चलू बढ़ाबी अप्पन भाषा
जहि धरती पर भारती गार्गी
मंडनमिश्रक जन्मस्थान
ओहि धरती पर बाढ़िक विपदा
सौंसे मिथिला अछि फिरिसान
चलू सजाबी लोकक जीवन
</poem>
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}}
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जहि धरती पर विद्यापति छथि
चंदा झा सन छथि विद्वान
ओहि धरती पर चलू देखाबी
काला आखर महिस समान
चलू मेटाबी अहि कलंककें
जे धरती अछि सोना उगलैत
पोखरि पोखरि माँछ मखान
ओहि धरती पर चलू देखाबी
भुक्खल अछि मजदूर किसान
चलू मेटाबी अहि पीड़ाकें
जहि भाषामे हरिमोहन छथि
यात्री जी सन गुण केर खान
ओ भाषा आय सिकुड़ि रहल अछि
सिमटि रहल मैथिल केर मान
चलू बढ़ाबी अप्पन भाषा
जहि धरती पर भारती गार्गी
मंडनमिश्रक जन्मस्थान
ओहि धरती पर बाढ़िक विपदा
सौंसे मिथिला अछि फिरिसान
चलू सजाबी लोकक जीवन
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