भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये
बेशक हों तृप्त लेकिन यह प्यास मर न जाये
लाखों हैं फूल खिलते, लाखों हैं रोज़ झरते
यह चक्र है नियति का मधुमास मर न जाये
 
फ़ितरत है आदमी की छूना बुलंदियों को
इतना ख़याल रखना एहसास मर न जाये
 
दुनिया का यह चलन है, दुनिया चलेगी यूँ ही
धोखे हज़ार हों पर , विश्वास मर न जाये
 
क्या टूटने के डर से बनते नहीं खिलौने
हम तों मरें हमारा इतिहास मर न जाये
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits