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19:20, 21 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आदमी बढ़िया था
कभी न कभी तो उसे जाना ही था
कब तक झेल सकता है आदमी धरती का भार
धरती आदमी से बहुत बहुत बड़ी और भारी है
शाम अँधेरे अकसर आती है उसकी याद।
</poem>