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|रचनाकार=मधु शर्मा
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}}
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<poem>
चटक और उदास
गिरती है धूप बफ़ पर
बर्फ़ पहाड़ों पर
और आसमान गिरता है टुकड़ों में
हरे के अँधेरे पर
जल के गहरे में,
शिखर की चट्टानों
और चट्टानों के पहरे में एकसार...
मैं आती हूँ इनमें धँसकर
मुक्त हुई
हर बार
</poem>
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चटक और उदास
गिरती है धूप बफ़ पर
बर्फ़ पहाड़ों पर
और आसमान गिरता है टुकड़ों में
हरे के अँधेरे पर
जल के गहरे में,
शिखर की चट्टानों
और चट्टानों के पहरे में एकसार...
मैं आती हूँ इनमें धँसकर
मुक्त हुई
हर बार
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