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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
खोये-खोये लगते हो, ठीक-ठाक तो हो
अपने में ही रहते हो, ठीक-ठाक तो हो

मैख़ानों की जान हुआ करते थे तुम तो
अब मंदिर में दिखते हो, ठीक-ठाक तो हो

पहले कितनी चाहत से मिलते थे तुम यार
अब कतराये फिरते हो, ठीक-ठाक तो हो

इस युग में भी प्यार व़फा और अपनेपन के
सपने देखा करते हो, ठीक-ठाक तो हो

कुछ भी ठीक नहीं लगता फिर भी `हस्ती' तुम
ठीक हूँ मैं तो कहते हो, ठीक-ठाक तो हो
</poem>