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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
एक मोहरा खेल का क्या ले गया
लुत्फ़ सारी बाज़ियों का ले गया

मुझसे जल्दी हार कर मेरा हरीफ़
जीतने का लुत्फ़ सारा ले गया

हमसे तो कुछ यूँ निभाई वक़्त ने
घर दिखाकर घर का रस्ता ले गया

इक उचटती सी नज़र डाली थी बस
वो न जाने मुझसे क्या-क्या ले गया

सारे तूफां देखते ही रह गए
ख़ुश्बुओं का लुत्फ़ झोंका ले गया

</poem>