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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
निकले हो रास्ता बनाने को
तुमने देखा नहीं ज़माने को

जंग दुनिया से मेरी जारी थी
आ गया घर भी आज़माने को

अम्न तो हम भी चाहते हैं मगर
लोग आमादा हैं लड़ाने को

अपनी छत को दुरुस्त कर पहले
फिर निकल आसमाँ सजाने को

अपनी सुध-बुध भुलाये बैठे हैं
जो भी आए हमें हराने को
</poem>