भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुटकी भर जीवन / ओम नीरव

2,043 bytes added, 07:34, 27 फ़रवरी 2019
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नीरव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeetika}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeetika}}
<poem>
प्यार करूँ किस भाँति प्रिये तुमसे अपना लहकाकर जीवन।
काम पड़े मटकी भर हैं पर शेष बचा चुटकी भर जीवन।

आपस में घड़ियाँ-लड़ियाँ बहतीं रहतीं मिलतीं सरिता सम,
पीकर तृप्त हुआ न कभी कुछ पागल-सा यह सागर-जीवन।

रूपसि-मृत्यु मिली मग में पर हार थकी सब भाँति रिझाकर,
जो इस पार वही उस पार रुका न कभी यह-निर्झर जीवन।

नेह लगा जिस गेह बसा वह छूट गया न हुआ अपना घर,
हार न मान रहा अब भी वह खोज रहा अपना घर जीवन।

और जिये कुछ और जिये यह चाह लिये रहता अति व्याकुल,
रुग्ण असाध्य पड़ा तन-मोह भरा दिखता अति कातर जीवन।

कामुक को मदमत्त करें बनके रति-साधन जो उकसे उर,
वे सच में सबसे पहले शिशु के हित पेय पयोधर जीवन।

तर्क-वितर्क न रंच रहे अनुभूति यथावत ही रख नीरव,
भाव भरा रच छंद वही जिसका हर अक्षर-अक्षर जीवन।

———————————-
आधार छंद-किरीट सवैया
मापनी (वर्णिक) -गालल 8
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits