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|रचनाकार=रामानुज त्रिपाठी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
पलकों में
सपने सजाने के
आए दिन
नेह में नहाने के
क्षण में याद आया कुछ
भूल गया फिर क्षण में
सुबह से शाम तक
बस केवल दर्पण में
निरख -निरख रूप
शरमाने के
आए दिन
नेह में नहाने के
कैसे कहूँ कि कौन
आकर मन में ठहरा
अधरों पर लाज का
अब तो पड़ा पहरा
जोर नहीं
सिवा छटपटाने के
आए दिन
नेह में नहाने के।
</poem>
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पलकों में
सपने सजाने के
आए दिन
नेह में नहाने के
क्षण में याद आया कुछ
भूल गया फिर क्षण में
सुबह से शाम तक
बस केवल दर्पण में
निरख -निरख रूप
शरमाने के
आए दिन
नेह में नहाने के
कैसे कहूँ कि कौन
आकर मन में ठहरा
अधरों पर लाज का
अब तो पड़ा पहरा
जोर नहीं
सिवा छटपटाने के
आए दिन
नेह में नहाने के।
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