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<poem>
आओ चलें
सपनों के गांव में
प्रीति के घरोंदें बनाएं।

अनबौरी लाज
की अमराई में
छाई खामोशी टूट सके,
अनबूझी उसांसों
की पुरवाई
महकी महकी सुगन्ध लूट सके।

आओ चलें
पलकों की छांव में
काजल के पांवडे़ बिछाएं।

ठहरे रहेंगे
उलाहने
अबोल अंधेरों पर कब तक,
अब तो बस
चुपके से घोल दें
रीते कटोरे में आलक्तक

आओ चलें
थके-थके पांवों में
नेह के महावर रचाएं।
</poem>
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