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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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<poem>
जइबइ हम ससुरारी,
छोड़ के बाप महतारी।महतारी
ताना मारे त मारे लोगवा,
लगइबइ पिया जी से यारी।। यारीजइबइ ....
सुन लऽ तूँ जी बाँके सजनमाँ,
तूँही हहो हमर सपनमाँ।सपनमाँछोड़ देबइ हम महल-अँटारी।। अँटारीजइबइ ....दिल देबो तोहरा नजराना।नजरानाबन जाये चाहे दुश्मन जमाना।जमानामार देबइ ओकरा कटारी।। कटारीजइबइ ....छोड़म न´् नञ् हम तोहर कलइया।कलइयातूँ हीं हऽ हमर कृष्ण-कन्हैया।कन्हैयाचाहे पारे कोय टिटकारी।। टिटकारीजइबइ .....
</poem>