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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
जब झकोरे हवाओं के चलने लगे
गीत आकर अधर पर मचलने लगे

था तपन इस तरह आग बरस रहा
ख़्वाब सारे निगाहों के जलने लगे

जब गुलाबों ने खुशबू से आँचल भरा
पीर-पंछी स्वयं ही बहलने लगे

आके बरखा ने सिहरा दिया तन मेरा
दर्द आँखों में मेरी पिघलने लगे

थे बड़ी मुश्किलों से नयन में रुके
स्नेह ने जब छुआ अश्रु ढलने लगे

</poem>