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डगर ज़िन्दगी जब भी खुद की सरल बन गयी तलाश होती है जिंदगी बेलिबास होती है मुश्किल स्वयं आज हल बन गयी
दिया हम ने प्याला था पीयूष कातोड़ देता है ग़म बहुत दिल कोसुधा बूँद थी क्यो गरल बन गयी फिर भी जीने की आस होती है
जो ईमानदारी का भरता था दमभीगी आँखे लरजते होठों परकुटी कैसे उस की महल बन गयी इक अजानी-सी प्यास होती है
झरोखे सभी बन्द अब खुल गयेक्या ग़ज़ब है कि मसर्रत में भीनयी रौशनी की पहल बन गयी रूह बेहद उदास होती है
उठाया था साहस ने पहला कदमढूँढ़ते हैं जिसे ज़माने मेंहिमालय की चोटी तरल बन गयी वो खुशी दिल के पास होती है
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