भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKRachna |रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
{{KKCatAwadhiRachna}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
साधो सपन भये उइ बोल
रहै जहां बिनु दामन मिसिरी कउनौ नाप न तोल

अब तौ ब्वालैं अइसी बोली जेहिमा पोलमपोल
बड़े छ्वाट सब पीटि रहे हैं झक्कड़ झइयम ढोल

बखतु परे पै लोग करति हैं केतना टालमटोल
चेहरन उप्पर जड़े मुखौटा कसा खाल पर खोल

तिरबाचुक कै हवा निकसि गै हर किरिया मा झोल
परखैया होई तौ जानी प्यारी प्रीति कै मोल

या दुनिया धोखे कै पुतरा सब कुछु है धंधोल
उड़ी चिरैया बगिया बचिगै रहिगै धरा अडोल

</poem>