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Kavita Kosh से
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जबसे किसी से दर्द का रिश्ता नहीं रहा
जीना हमारा तबसे हीजीना ही जीना नहीं रहा
तेरे ख़यालो-ख़्वाब ही रहते हैं आस-पास
अपनों कोअपनों पर ही भरोसा नहीं रहा
मिल-बैठ सोचने का भी जज़्बा नहीं रहा
दारोमदारे-ज़िन्दगी जिसपर था, वो भी तोजैसा समझते थे उसे, वैसानहीं वैसा नहीं रहा
ये नस्ले-नौ है इतनी मुहज़्ज़ब कि इसमें आज
'दरवेश' गुफ़्तगू का सलीक़ानहीं सलीक़ा नहीं रहा
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