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पण / धनेश कोठारी

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<poem>
ग्वथनी का गौं मा बल

सुबेर त होंदी च/ पण

पाळु नि उबौन्दु



ग्वथनी का गौं मा बल

घाम त औंद च/ पण

ठिंणी नि जांदी



ग्वथनी का गौं मा बल

मंगारु त पगळ्यूं च/ पण

तीस नि हबरान्दी



ग्वथनी का गौं मा बल

उंदार त सौंगि च/ पण

स्या उकाळ नि चड़्येन्दी



ग्वथनी का गौं मा बल



ग्वथनी का गौं मा बल

ब्याळी बसायत च/ पण

आज-भोळ नि रैंद



ग्वथनी का गौं मा बल

सतीर काळी ह्वईं छन/ पण

चुलखान्दौं आग नि होंद



ग्वथनी का गौं मा बल

दौ-मौ नि बिसर्दू बाद्दी/ पण

बादिण हुंगरा नि लांदी



ग्वथनी का गौं मा बल

इस्कुलै चिणैं त ह्वईं च/ पण

बाराखड़ी लुकि जांदी



ग्वथनी का गौं मा बल

स्याळ त गुणि माथमि दिखेंदा/ पण

रज्जा जोगी जोगड़ा ह्वेजांदा



ग्वथनी का गौं मा बल

सौब धाणि त च/ पण

कुछ कत्त नि चितेंद।

</poem>
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