भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
रखियोॅ लाज हमरोॅ बातोॅ के।
अनपढ़-निरक्षर भैया-भौजी के
भाग खुललौं आबेॅ टाटोॅ केॅ।।केॅ।
पैंट-शर्ट जुŸाा-घड़ी पिन्ही केॅ
दोसरां कन जाय केॅ टी वी देखथौं ।
पूछबौं कि कुछु बुझै छोॅ भौजी
लाजोॅ सेॅ दाँत ठिठियाय देथौं।।देथौं।
भैया-भौजी केॅ करौं प्रणाम
ओकरा सेॅ होथौं तोरे नाम।
दस बीच दसखत करी केॅ भैया
मोंछ घुमाय दोॅ रटियाय केॅ।।केॅ।
</poem>