भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तुम्हारी बेवफाई तो हमें बस टीस देती है
तुम्हारे खौफ का गहरा समुंदर याद आता है।है
तुम्हीं बोलो कहाँ जायें न दिखता है कोई अपना
जिधर नजरें फिराता हूँ वो अक्सर याद आता है।है
अभी मिल्लत से रहना ही जमाने का तकाजा है
शबे-ग़म को भुलाने का ही अवसर याद आता है।है
वफ़ा करके भी मिलती है नहीं सबको वफ़ा जग में
मुहब्बत से भरा बचपन का वो घर याद आता है।है
</poem>