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समझावण जद समंद ने तांण्यौ तीर कबांण
जळ सूख्यौ थळवट भई परगट प्रिथी प्रमांण

परगटी जद सूं प्रिथी माडैय बण मिजमांन
काळ आय डेरा किया जांणै सकल जहांन

सांवरियै नंह सोचियौ ऊंडौ समंद अथाह
चक्र काळ रौ चालसी धोरां तणी धराह

बरस हजारां बीतग्यां कितराई पड़ग्या काळ
मानी हार न मांनखै मांन्यौ नहीं महाकाळ

धोरां री तपती धरा लूआं रा लपटाह
मांणस मुरधर देस रा झालै नित झपटाह
</poem>
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